Intekhab E Kalam Nida Fazli

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ندا فاضلی


निदा फ़ाज़ली انتخابِ کلام ندا فاضلی

 

کبھی کسی کو مکمل جہاں نہیں ملتا

کہیں زمین کہیں آسماں نہیں ملتا

تمام شہر میں ایسا نہیں خلوص نہ ہو

جہاں امید ہو اس کی وہاں نہیں ملتا

کہاں چراغ جلائیں کہاں گلاب رکھیں

چھتیں تو ملتی ہیں لیکن مکاں نہیں ملتا

یہ کیا عذاب ہے سب اپنے آپ میں گم ہیں

زباں ملی ہے مگر ہم زباں نہیں ملتا

چراغ جلتے ہیں بینائی بجھنے لگتی ہے

خود اپنے گھر میں ہی گھر کا نشاں نہیں ملتا

कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता

कहीं ज़मीन कहीं आसमाँ नहीं मिलता

तमाम शहर में ऐसा नहीं ख़ुलूस हो

जहाँ उमीद हो इस की वहाँ नहीं मिलता

कहाँ चराग़ जलाएँ कहाँ गुलाब रखें

छतें तो मिलती हैं लेकिन मकाँ नहीं मिलता

ये क्या अज़ाब है सब अपने आप में गुम हैं

ज़बाँ मिली है मगर हम-ज़बाँ नहीं मिलता

चराग़ जलते हैं बीनाई बुझने लगती है

ख़ुद अपने घर में ही घर का निशाँ नहीं मिलता


2

دنیا جسے کہتے ہیں جادو کا کھلونا ہے

مل جائے تو مٹی ہے کھو جائے تو سونا ہے

اچھا سا کوئی موسم تنہا سا کوئی عالم

ہر وقت کا رونا تو بے کار کا رونا ہے

برسات کا بادل تو دیوانہ ہے کیا جانے

کس راہ سے بچنا ہے کس چھت کو بھگونا ہے

یہ وقت جو تیرا ہے یہ وقت جو میرا ہے

ہر گام پہ پہرا ہے پھر بھی اسے کھونا ہے

غم ہو کہ خوشی دونوں کچھ دور کے ساتھی ہیں

پھر رستہ ہی رستہ ہے ہنسنا ہے نہ رونا ہے

آوارہ مزاجی نے پھیلا دیا آنگن کو

آکاش کی چادر ہے دھرتی کا بچھونا ہے

दुनिया जिसे कहते हैं जादू का खिलौना है

मिल जाए तो मिट्टी है खो जाए तो सोना है

अच्छा सा कोई मौसम तन्हा सा कोई आलम

हर वक़्त का रोना तो बे-कार का रोना है

बरसात का बादल तो दीवाना है क्या जाने

किस राह से बचना है किस छत को भिगोना है

ये वक़्त जो तेरा है ये वक़्त जो मेरा है

हर गाम पे पहरा है फिर भी इसे खोना है

ग़म हो कि ख़ुशी दोनों कुछ दूर के साथी हैं

फिर रस्ता ही रस्ता है हँसना है रोना है

आवारा-मिज़ाजी ने फैला दिया आँगन को

आकाश की चादर है धरती का बिछौना है


3

سفر میں دھوپ تو ہوگی جو چل سکو تو چلو

سبھی ہیں بھیڑ میں تم بھی نکل سکو تو چلو

کسی کے واسطے راہیں کہاں بدلتی ہیں

تم اپنے آپ کو خود ہی بدل سکو تو چلو

یہاں کسی کو کوئی راستہ نہیں دیتا

مجھے گرا کے اگر تم سنبھل سکو تو چلو

کہیں نہیں کوئی سورج دھواں دھواں ہے فضا

خود اپنے آپ سے باہر نکل سکو تو چلو

یہی ہے زندگی کچھ خواب چند امیدیں

انہیں کھلونوں سے تم بھی بہل سکو تو چلو

सफ़र में धूप तो होगी जो चल सको तो चलो

सभी हैं भीड़ में तुम भी निकल सको तो चलो

किसी के वास्ते राहें कहाँ बदलती हैं

तुम अपने आप को ख़ुद ही बदल सको तो चलो

यहाँ किसी को कोई रास्ता नहीं देता

मुझे गिरा के अगर तुम सँभल सको तो चलो

कहीं नहीं कोई सूरज धुआँ धुआँ है फ़ज़ा

ख़ुद अपने आप से बाहर निकल सको तो चलो

यही है ज़िंदगी कुछ ख़्वाब चंद उम्मीदें

इन्हीं खिलौनों से तुम भी बहल सको तो चलो


4

اپنی مرضی سے کہاں اپنے سفر کے ہم ہیں

رخ ہواؤں کا جدھر کا ہے ادھر کے ہم ہیں

پہلے ہر چیز تھی اپنی مگر اب لگتا ہے

اپنے ہی گھر میں کسی دوسرے گھر کے ہم ہیں

وقت کے ساتھ ہے مٹی کا سفر صدیوں سے

کس کو معلوم کہاں کے ہیں کدھر کے ہم ہیں

چلتے رہتے ہیں کہ چلنا ہے مسافر کا نصیب

سوچتے رہتے ہیں کس راہ گزر کے ہم ہیں

ہم وہاں ہیں جہاں کچھ بھی نہیں رستہ نہ دیار

اپنے ہی کھوئے ہوئے شام و سحر کے ہم ہیں

گنتیوں میں ہی گنے جاتے ہیں ہر دور میں ہم

ہر قلم کار کی بے نام خبر کے ہم ہیں

अपनी मर्ज़ी से कहाँ अपने सफ़र के हम हैं

रुख़ हवाओं का जिधर का है उधर के हम हैं

पहले हर चीज़ थी अपनी मगर अब लगता है

अपने ही घर में किसी दूसरे घर के हम हैं

वक़्त के साथ है मिटी का सफ़र सदियों से

किस को मालूम कहाँ के हैं किधर के हम हैं

चलते रहते हैं कि चलना है मुसाफ़िर का नसीब

सोचते रहते हैं किस राहगुज़र के हम हैं

हम वहाँ हैं जहाँ कुछ भी नहीं रस्ता दयार

अपने ही खोए हुए शाम सहर के हम हैं

गिनतियों में ही गिने जाते हैं हर दौर में हम

हर क़लमकार की बे-नाम ख़बर के हम हैं


5

جتنی بری کہی جاتی ہے اتنی بری نہیں ہے دنیا

بچوں کے اسکول میں شاید تم سے ملی نہیں ہے دنیا

چار گھروں کے ایک محلے کے باہر بھی ہے آبادی

جیسی تمہیں دکھائی دی ہے سب کی وہی نہیں ہے دنیا

گھر میں ہی مت اسے سجاؤ ادھر ادھر بھی لے کے جاؤ

یوں لگتا ہے جیسے تم سے اب تک کھلی نہیں ہے دنیا

بھاگ رہی ہے گیند کے پیچھے جاگ رہی ہے چاند کے نیچے

شور بھرے کالے نعروں سے اب تک ڈری نہیں ہے دنیا

जितनी बुरी कही जाती है उतनी बुरी नहीं है दुनिया

बच्चों के स्कूल में शायद तुम से मिली नहीं है दुनिया

चार घरों के एक मोहल्ले के बाहर भी है आबादी

जैसी तुम्हें दिखाई दी है सब की वही नहीं है दुनिया

घर में ही मत उसे सजाओ इधर उधर भी ले के जाओ

यूँ लगता है जैसे तुम से अब तक खुली नहीं है दुनिया

भाग रही है गेंद के पीछे जाग रही है चाँद के नीचे

शोर भरे काले नारों से अब तक डरी नहीं है दुनिया